मन्दसौर में पैदा हुये मुरार ग्वालियर में पले तथा 1909 में हाई स्कूल परीक्षा पास करके झांसी आकर गणेश मन्दिर में रहने लगे। रेल्वे की नौकरी करने लगे । गांधीवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के कारण 1930 के रेल्वे की नौकरी छोड़ दी। स्वतंत्रता आन्दोलन में कूदने के साथ-साथ झांसी में युवकों के स्वास्थ्य के लिये कुछ कर गुजरने की ठानी। अतः दो चार युवकों को लेकर पचकुंया स्थित महाराष्ट्र व्यायामशाला में व्यायाम कार्य प्रारम्भ किया परन्तु महाराष्ट्र समाज ने इनके साथियों पर मराठी न होने के कारण व्यायाम शाला प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अन्ना जी ने नाराज होकर वर्तमान स्थान 18 जून 1933 में श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झांसी की स्थापना की इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऊबड़-खाबड़ भूमि को ठीककर स्वयं बांस का टपरा बनाकर व्यायाम कार्य प्रारम्भ कराया। अन्ना जी बेरोजगार रहे, भूखे-प्यासे रहे लेकिन श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर को बनाये रहे। इस स्थान पर सिनेमा घर नहीं बनने दिया। सिनेमा घर की तोड़-फोड़ करने के लिये अपने साथियों सहित जेल भी गये। सस्था को बनाये रखने में उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावार कर दिया। अपने साथियों एवं शिष्यों के साथ कड़ी मेहनत, निष्ठा और अनुशासन के साथ संस्था को खेलकूद और शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शिखर पर पहुंचा दिया जो अनुकरणीय एवं स्मरणीय है